किसान का बेटा बना प्रोफेसर फिर गाय भैंस चराने से लेकर प्रोफेसर बनने तक का सफर Professor ki Diary by Dr. Laxman Yadav

प्रोफेसर की डायरी

                                          लेखक-डॉ.लक्ष्मण यादव

डॉ. लक्ष्मण यादव जी द्वारा लिखी गई उनकी यह किताब “प्रोफेसर की डायरी” लोगों को इतनी पसंद आ रही है। इस किताब की डिमांड बहुत बढ़ रही है लोगों के यहां किताब बहुत अच्छी लग रही है कहीं-कहीं से तो यहां आउट ऑफ स्टॉक भी दिखा देता है क्योंकि लोग इसे खरीद रहे हैं अगर यह किताब आपको भी खरीदनी है तो आप नीचे दिए गए लिंक से इसे खरीद सकते हैं इसकी बुकिंग कर सकते हैं-

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किसान का बेटा बना प्रोफेसर फिर गाय भैंस चराने से लेकर प्रोफेसर बनने तक का सफर Professor ki Diary by Dr. Laxman Yadav
Dr.Laxman Yadav

इस किताब के बारे में जाने:

Book: Professor ki Diary

मैंने इसका नाम “प्रोफेसर की डायरी” रखा है। इसके पीछे भी एक कहानी है । लेकिन अब “प्रोफेसर की डायरी” के नाम की किताब आपके हाथों में है। एकेडमिक जीवन का एक लंबा सफर रहा,आजमगढ़ जिला यूपी के एक पिछड़े किसान परिवार में पैदा हुआ। बचपन में गाय, भैंस चराया करते थे । घर वालों ने कलम किताब की अहमियत समझी, हाथ में कलम पकड़ा दी,और किताब,शुरुआती तालीम (शिक्षा) के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय पहुंचा। वहां से बी ए और एम ए किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय टॉप किया, “गोल्ड मेडलिस्ट आफ बैचलर्स” उसके बाद दिल्ली चला आया, और यहां पर आकर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की, और मात्र 21 साल 6 माह में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गया । मगर परमानेंट नहीं,”एडहाक”एडहाक का मतलब क्या होता है ? यह भी आपको इस किताब में देखने को मिलेगा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय का मेरा शैक्षिक जीवन क्या रहा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय कैसा है। मैं पूर्वांचल के लोग (उत्तर प्रदेश का पूर्व का क्षेत्र में आने वाला भाग) जिला इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आते हैं। तो क्या कुछ गुजरता है,हर रोज का एक-एक किस्सा है। इसमे रूम से लेकर क्लासरूम तक का किस्सा है । आसपास के लोगों से लेकर के प्रोफेसर के किस्से हैं। कुछ किस्से आपको गुदगुदायेंगे, और कुछ किस आपको रुलाएंगे, कुछ किस्से आपको, आप के एकेडमिक जीवन में ले जाएंगे। आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे, विश्वविद्यालय के बारे में सोचना आपका भी फर्ज है। रिसर्च के दौरान के ढेर सारे किस्से हैं । आपने के सत्ता में दूसरों के किस्से हैं। डायरी की शक्ल में मैं कुछ रोज लिखा करता था, पिछले कई वर्षों से में टुकड़ों टुकड़ों में बहुत सारी चीज़ लिखी, जो गुजरता वह जाकर घर में बैठकर स्टोरी लिख देता था। लिखने की वजह यह थी, कि अगर कभी मौका मिला, मन बना, जरूरत महसूस हुई, तो इन लिखे हुए पन्नो को सहेज कर एक किताब बनाकर लोगों को सौंप देंगे। कि आप भी देखा कि आपके देश में शिक्षा व्यवस्था के भीतर क्या चल रहा है।इस किताब कॉलेज के नाम लोगों के नाम को बदल दिए गए हैं की कोई इस अपने दिल पर ना ले क्योंकि मेरा मकसद किसी को व्यक्तिगत ठेस पहुंचाने का नहीं है। कुछ शिक्षा की उसे अनकही कहानी को आपसे कहने का है। मेरा मेरे कॉलेज के छात्र आंदोलन, शिक्षक आंदोलन, प्रतिरोध है तो कहीं, चापलूसी दरबार लगा हुआ है। इसके किस्से इस किताब में मिलेंगे।यह नाम प्रोफेसर लक्ष्मण की कहानी नहीं है। यह उच्च शिक्षा की अनकही कहानी ।

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