Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Aroh -Chapter 1 कबीर का सार
Chapter 1
कबीर का सार
खण्ड 1 हम तौ एक एक करि जांनां ।
खण्ड 2 संतो देख़त जग बौराना।
कवि परिचय
जीवन परिचय– संत कबीर दास का जन्म 1398 ई ग्राम लहरता ज़िला वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था।इनका पालन-पोषण जुलाहा परिवार में हुआ,कबीर दास जी ने अपना गुरु रामानन्द जी को मानते थे।कबीर दास निर्गुण भक्ति साखा के मानने वाले थे।कबीर दास समाज में फैले झूठ ,पाखंड,वेद-विचार,जाति-भेद,वर्ण-भेद ,संप्रदाय-भेद के स्थान पर प्रेम-भाव,समानता समाज के प्रेमी थे ।
रचनायें -कबीर दास जी का परमुख ग्रंथ बीजक है ।
हम तौ एक एक करि जांनां ।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समांनां ।
एकै खाक गढ़े सब भांड़ै एकै कोंहरा सानां।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।
सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।
माया देखि के जगत लुभाने काहे रे नर गरबांनां।
निरभै भया कछू नंहि ब्यापै कहै कबीर दिवांनां। ।
संदर्भ – प्रस्तुत खण्ड पद कक्षा 11 हिन्दी की किताब आरोह से लिया गया है।इसके रचयिता संत कबीर दास जी है ।
प्रसंग -प्रस्तुत पंक्तियों में संत कबीर दास जी ने ईश्वर एक है बताया है ।लेकिन मनुष्य ईश्वर को कई रूपों में मानता है,कबीर दास जी कहते है यह अज्ञानी मनुष्य मानते है। क्योंकि जिस तरह पृथ्वी एक है,जल एक है,आग एक, वायु एक है, उसी प्रकार परमात्मा भी एक है उसी ने इस संसार की रचना की है उसी की सत्ता बिघमान है ।
व्याख्या -कबीर दस जी कहते हैं की जो लोग ईश्वर को ईश्वर रूपी परम तत्व आत्मा को परमात्मा के अस्तित्व को अलग-अलग मानते है।असल में उन्हें परमात्मा(ईश्वर)की पहचान ही नहीं है।अर्थात् वो अपनी अज्ञानता से ऐसा समझते हैं।क्योंकि हवा(पवन) एक है,जल(पानी) एक है,और आग (अग्नि)भी एक है उसी तरह इस सृष्टि पर परमात्मा भी एक है कबीर दस जी कहते है की जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाता है उसी प्रकार इस संसार का रचयिता परमात्मा ने मनुष्य की रचना की है कुम्हार मिट्टी में जल मिलता है,बर्तन को हवा से सूखता है ,आग में पकाता है फिर एक बर्तन तैयार होता है उसी प्रकार मनुष्य को जल,हवा,नभ आदि पाँच तत्वों से मिलकर बनाया है ।
कबीर दस जी कहते है की लकड़ी को बढ़ाई काट सकता है परंतु जब लकड़ी जलने लगती है और उसमे से जो आग निकलती है उसे काटा नहीं जा सकता ।
कवि ने इस शरीर को लकड़ी के समान और आत्मा को अग्नि के समान बताया है। की शरीर को काटा जा सकता है परन्तु आत्मा को काटा नहीं जा सकता,
कबीर दास जी कहते हैं कि यह संसार माया (धन ,सम्पति) देखकर किसी को कुछ नहीं समझाता उसी को लेकर गर्व करता है। और आख़िरी पंक्ति में कहते की जो मनुष्य इस माया-मोह से मुक्त रहते है उन्हें किसी प्रकार का लालच भी नहीं रहता वो लोग निर्भय रहते हैं ।उन्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता और ऐसे मनुष्यों के अन्दर डर व्याप्त नहीं होता है।
सतों दखत जग बौराना।
साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।
नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।
कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।
कबीर दास जी ज्ञान देते हुए संतों से कहते हैं हे साधको! देखो सारा जग (संसार )पागल हो गया है,बौरा गया है यदि उसके सामने सही (सत्य)बात कही जाती है तो वह नाराज हो जाता है, गुस्सा हो जाता है और मारने के लिए दौङ पढ़ता है, परंतु झूठी बातों पर विश्वास करता है,
कबीर दास जी पाखंड का खंडन करते हुए कहते हैं कि मैंने नियम,धर्म,दिनचर्या का कठोर पालन करने वालों को देखा है। और मिल भी हूं, वह रोज सुबह उठकर स्नान ध्यान करके शुद्ध होते हैं, किंतु अपने भीतर जो परमात्मा छुपा हुआ है, उसे छोड़कर दुनिया भर के, जो व्यर्थ के नियमों में उलझ जाते है । व्रत रखना, पत्थरों की पूजा करना, उस मानव का ज्ञान थोथा बेकार है,कबीर दास जी ने यंहा हिंदू मुसलमान दोनों को आङे हाथ लिया ,वे कहते हैं कि मैंने बहुत से पीर,पैगंबर देखे हैं। जो अपने शिष्यों को धार्मिक ग्रंथ कुरान पढ़ते हैं,और उन्हें समझते हैं और उन शिष्यों को तरह-तरह के उपाय बता कर अपना मुरीद बना लेते हैं। जिन्हें उस खुदा के बारे में खुद ही ज्ञान नहीं है,उन पाखंडियों ने खुद को जाना ही नहीं है। कबीर दास जी कहते हैं की बहुत साधक आडंबर करते हैं आसन लगाकर बैठे हैं और जिसे साधक होने का मन मे अहंकार है। “पीपर पाथर पूजन लागे,तीरथ गर्व भुलाना” पीपल के वृक्ष और पत्थर की मूर्तियों की पूजा कर रहे हैं, तीर्थ जाकर और vraton का पालन कर रहे हैं, वह सब छल है भुलावा है। साधक के नाम पर भटकाव है और साधक गले में माला,माथे पर तिलक, टोपी ,तरह-तरह की छाप रंग बिरंगे को देखकर ही अनुमान लगाया जा सकता है। ये लोग दोहा और सबद गाते फिरते हैं, लेकिन वास्तव में इन्हें स्वयं परमात्मा तत्व का ज्ञान नहीं है। हिंदू कहते हैं कि मुझे राम प्रिय है, मुसलमान कहते हैं कि मुझे रहीम प्रिया है, इसी राम-रहीम के नाम यर हिंदू-मुसलमान दोनों आपस में लड़ते हैं झगड़ा करते हैं, लेकिन इन दोनों हिंदू मुसलमान ने कोई ईश्वर अल्लाह को समझा ही नहीं पाया है जाना ही नहीं है यह अज्ञानी है। ऐसे पाखंडी लोग घर-घर जाकर ज्ञान बताते फिरते रहते हैं ।गुरु मंत्र देते हैं ,या साधक अपनी-अपनी महिमा बढ़ाने के फेर कर रहे हैं। ऐसे तथाकथित गुरु अभिमानी है,ऐसे पाखंडी गुरु अपने शिष्य सहित सब भवसागर में डूब जाएगे और अंत मे उन्हें पछताना पड़ेगा। कबीर दास जी कहते हैं कि संतों सुनो यह सब पाखंडी भ्रम में भूले हुए हैं उन्हें मैने कितना समझाया लेकिन इनकी समझ में कुछ आता ही नहीं है कुछ मानते ही नहीं है जबकि ईश्वर ही आसान साधना से मिल सकता है
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पद के साथ
प्रश्न 1. कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं ?
उत्तर– कबीर दास जी ने ईश्वर की एकता के अनेक के अनेक तर्क दिये हैं ।
1– जिस प्रकार जल, हवा,अग्नि ,आकाश,पृथ्वी एक है
2–सारा जगत् एक ही ज्योति से प्रकाशित है।
3–परमात्मा लकड़ी में अग्नि की तरह है शरीर में आत्मा की तरह है।
4–परमात्मा मूल रूप से एक ही है।
5–सभी रूपों में उसका वही एक निवास करता है।
प्रश्न 2.मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?
उत्तर—शरीर निर्माण में ये पाँच तत्व हैं—जल,अग्नि,आकाश,पृथ्वी,वायु।
प्रश्न 2 शरीर का निर्माण किन पांच तत्व से हुआ है
उत्तर –मानव का शरीर जल, अग्नि, पानी ,जमीन, आसमान ,से पांच तत्वों से मिलकर बना।
प्रश्न 3,जैसे बाढी काष्ट ही काटे अग्नि न कटे कोई
और सब घर अंतर तू ही व्यापक धारण स्वरूप सोई
इस आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है
उत्तर –उत्तर दो कबीर दास जी का मानना है कि परमात्मा मूल तत्व है वह सारे जगत में उसका अस्तित्व है। जैसे लकड़ी बधाई कट तो सकता है,परंतु उसमें जो अग्नि है उसे नष्ट नहीं कर सकता, इस प्रकार मनुष्य का शरीर नष्ट किया जा सकता है, लेकिन उसमें निहित आत्मा को नष्ट नहीं किया जा सकता। आत्मा अमर है। प्रश्न 4 कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर—कबीर दास ने अपने को दीवाना इसलिए कहा है क्योंकि कबीर दास ने अपने अंदर की आत्मा से सीधे साक्षात्कार कर लिया और वह परमात्मा के साधक बन गए ,उन्हें इस संसार, से मोह माया नहीं रही,लोभ-लालच खत्म हो गया लाभ-हानि ,राग-द्वेष दूर हो गया।अब उन्हें किसी प्रकार का डर नहीं है। वह अब निर्भय हो गये
प्रश्न 5 कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
उत्तर –‘कबीर दास जी ने ऐसा इसलिए कहा है कि सारा संसार बौरा गया है । क्योंकि संसार सच पर विश्वास नहीं करता है। और झूठ पाखंड ढोंग को मानता है,वह परमात्मा को जानने का प्रयत्न नही करता, लेकिन व्रत स्नान ध्यान का पालन करता है,और शुद्ध होता है। वह कुरान पढ़ना, पीपल पूजन,पत्थर पूजन,तिलक लगाना, टोपी, दोहे, शब्द गाकर,साधकों को मुरीद बना लेता है। हिंदू मुसलमान में भेद करना ,लड़ाई झगड़ा करना, आज को स्वीकार करता है। किंतु परमात्मा को नहीं जानता। कबीर दास जी इसे पागलपन बताया है।
प्रश्न 6 कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों को किन-किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर—कवि ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों को बताया है,कि वह परमात्मा से कोसों दूर हैं वह इसको समझने की कोशिश ही नहीं करते,साथ
प्रश्न 7 अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिषयो की क्या गति होती है?
उत्तर-अज्ञानी गुरु के पास जाने पर शिष्य भी डूब जाते हैं ,वह उनके ढोंग झूठ बातों में फंस जाते हैं और बाद में उन्हें पछतावे के सिवाय कुछ नहीं मिलता ।
प्रश्न 8 ब्रम्हा अङामबरो अपेक्षा स्वयं (आत्मा) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर -ब्रह्मा आडंबर की अपेक्षा स्वयं (आत्मा) को पहचानने की बात में निम्न पत्तियों में कही गई है।
टोपी पहिरे माला पहिरे,छाप तिलक अनुमाना ।।
साक्षी शब्द गावत भोले आत्म खबर न जाना ।।
मतलब लोग टोपी पहने हैं,माला फेर रहे हैं, तिलक लगाए हुए हैं,दोहा सोरठा गाकर ज्ञान दे रहे हैं लेकिन उनको अपनी आत्मा में जो परमात्मा है उसकी कोई खबर नहीं है