Class 10 Hindi NCERT Book Summary Chapter 11 बाल गोविंद भगत
पाठ
बाल गोविंद भगत
लेखक -रामवृक्ष बेनीपुरी
जीवन परिचय– रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरनगर जिले के बेनपुरी गाव सन 1899 में हुआ था उनके पिता फुलवंत सिंह किसान थे माता का इनके आरंभिक जीवन में देहांत हो गया जिसके कारण इनका जीवन भाव के कठिनाइयों से में बीटा 15 वर्ष की आयु में उनकी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में छपने लगी थी बेहद प्रतिभाशाली पत्रकार थे उन्होंने अनेक
दैनिक साप्ताहिक एवं मासिक पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया भी किया है जिसमें से प्रमुख तरुण,भारत, किसान मित्र, बालक, युवक,योगी, जनता,जनवाणी, नई धारा,उल्लेखनीय है
साहित्य -इनका साहित्य बेन पूरी रचनावली के आठ खंडो में प्रकाशित है पत्तों के देश में चिंता के फूल, अमबापाली,माटी की मूर्ति, पैरों में पंख बांधकर, जंजीर और दीवारें, इन्हें कलाम का जादूगर कहा जाता है ।
-पाठ परिचय-
बाल गोबिन भगत रेखा चित्र के माध्यम से लेखक ने एक ऐसे विलक्षण चरित्र का उद्गम उद्घाटन किया है। जो मनुष्यता, लोक संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है, वेशभूषा या वह अनुष्ठानों से कोई सन्यासी नहीं होता, संन्यास का आधार जीवन में मानवी सरोकार से होता है, बाल गोविंद भगत इसी आधार पर लेखक को संन्यासी लगते हैं । यह पाठ सामाजिक रूढ़ियों पर भी प्रहार करता है, इस रेखा चित्र की विशेषता यह है कि बाल गोविंद भगत के माध्यम से ग्रामीण जीवन की संजीदा झांकी देखने को मिलता है।
बाल गोविंद का व्यक्तित्व –
बाल गोविंद भगत मंझौल कद ना अधिक लंबा और ना ही अधिक बौने यानी मझोल कद के गोरे, उनकी उम्र लगभग 60 वर्ष से अधिक,उन्होंने बालों की जटा नहीं रखी धीर, हां उनका चेहरा सफेद दाढ़ी से चमकता रहता, अधिक कपड़े भी नहीं पहनते, बस कमर पर एक लगी लूंगी बंधे रहते लंगोटी बंधे रहते,सिर में कनपटी वाली टोपी कबीरपंथी सफेद रंग की पहने रहते, जाड़े में एक कमरी(कंबल) ले लेते और माथे पर चंदन का टीका सफेद जो नाक के ऊपर भाग कुछ होता, लगाए रहते थे रहते थे गले में तुलसी की माला पहने रहते, बालगोबिन पक्के साधु थे साधु और ग्राहक भी ।
बाल गोविंद परिवार-
बाल गोविंद एक पक्के साधु के साथ-साथ उनके परिवार भी था।उनका एक बेटा वह और बहू भी थी बेटा खेती किसानी करता बहु साथ में खेती में भी हाथ बटाती थी
बाल गोविंद सच्चे साधु –
बाल गोविंद परिवार के साथ-साथ साधु थे,वह कबीर साहब को मानते थे और उन्हीं के दोहे गेट पैड गेट वे झूठ कभी नहीं बोलते और न खराब व्यवहार रखते । बिना पूछे किसी की चीज या वस्तु में हाथ नहीं लगते उसके देने पर ही वह प्राप्त करते,यहां तक वह किसी दूसरे के खेत में सौंच भी नहीं करने जाते, वह किसी से भी दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते, वह ग्रहस्थ थे लेकिन उनकी सब चीज साहब की थी, जो कुछ खेत में पैदा होता सिर पर लादकर सबसे पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते आश्रम उनके घर से चार कोर्स की दूरी पर था, एक कबीरपंथी मठ में मतलब वह दरबार में भेंट के रूप में देते,और जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसे लौटाकर घर ले आते
अलौकिक गायन’
लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी जी कहते हैं कि मैं उनके इस मधुर गान पर मुग्ध था।वह कबीर दास की पद दोहे जो गाते उनके कंठ से निकलने वाली आवाज बहुत ही आकर्षक मीठी थी अषाढ का महीना है उनके गांव व समीप के गांव में लोग खेतों में धान की रोपाई कर रहे हैं, धान के खेतों में पानी भरा है बच्चे उसी में उछल रहे हैं,औरते कलेवा लेकर (यानी दोपहर के पहले का समय) मेड पर बैठी हैं,आसमान बादलों से घिरा है, धूप बिल्कुल नहीं है हल्की सी करियारी छाई है,मौसम पूरी तरह खुशनुमा है, हलकी पुुवायी हवा बह रही है,बाल गोबिन का पूरा शरीर माटी से लिथरा है, वह अपने के खेत में रोपनी कर रहे हैं, और उनके कंठ से मधुर गीत सुनाई दे रहे हैं, उनकी इस मधुर गान से मेड पर खड़ी औरतों के होंठ भी धीरे-धीरे गाने लगते हैं बच्चे भी धूम से झूम उठते हैं खेत जोत रहे किसान के पैर कदमताल करने लगते हैं, बाल गोविंद का यही संगीत जादू है।
भादो की रात में भक्ति गीत-
भादो का महीना है काली अंधेरी आधी रात को मूसलाधार बारिश बंद हो चुकी है और उनकी खंजरी डिमक डिमक बज रही है, और वह गा रहे हैं “गोदी में पियवा चमक उठे सखियां,” पिया गोद में है ,परंतु वह समझती हैं कि वह अकेली हैं उनका यह गीत आकाश मत अचानक चौक उठने वाली बिजली की तरह चौका देता है, सारा संसार सोया है परंतु भगत का संगीत जाग रहा है,”तेरी गठरी में लगा कर मुसाफिर जाग जरा”
प्रभाती स्वर –
कार्तिक हिंदी का महीना,आते ही बाल गोविंद भगत की प्रभातिया शुरू हो जाती हैं जो लगातार फागुन महीने तक चलती,वह सुबह ही नदी से स्नान से लौटकर अपने गांव के पोखर तालाब के किनारे ऊंचे मिट्टी के भिड़े पर अपनी खंजढी लेकर बैठ जाते और गाने तैरने लगते, एक दिन माघ की उस दांत किट किटाने ने वाली भोर में भी उनका संगीत पोखरे पर ले गया,अभी आसमान के तारों के दीपक बुझे नहीं थे खेत बगीचा घर सब कुहासा छा रहा था,काली कमली ओढ़ बाल गोविंद भगत अपनी खंजरी लिए बैठे थे, उनके मुंह से शब्दों का तांता लगा था ।उनकी उंगलियां खंजरी पर लगातार चल रही थी, गाते गाते इतने मस्त हो जाते,इतने सुरूर में आते, कमली बार-बार सर से नीचे सरक जाती, लेखक जाड़े के मारे कांप रहा था, लेकिन बाल गोविंद के माथे पर तारों की छांव में भी उसके माथे पर से पसीना की बूंदे चमक रही थी
संध्या यानी संध्या शाम का गायन-
गर्मी के मौसम में अक्सर भरी गर्मी में अपने घर के आंगन में आसन लगाकर बैठ जाते। और गांव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते, उनके प्रेम मंडली,जो वह गीत को दोहराती रहती, उनका सर ऊपर उठता जाता,वह गाते गाते मगन हो जाते, और एक समय ऐसा आता, कि खांजङी लेकर बाल गोबिन नाच रहे हो, उनके साथ ही सारा आंगन नृत्य सील हो जाता सभी नाचने लगते
इकलौते बेटे की मृत्यु-
बाल गोविंद का बेटा मंदबुद्धि और सूप्त था ,उन्होंने बड़ी साध से उसकी शादी कराई पुत्रवधू बड़ी ही सुगम और सुशील मिली उसने घर का सारा प्रबंध संभाल लिया। भगत कुछ दिन बाद भगत का बेटा बीमार हुआ और कुछ दिन बाद वह स्वर्ग सिधार गया।
बैरागी क्या का प्रत्यक्ष दर्शन-
लेखक को जब पता चला की भगत का इकलौता बेटे की मृत्यु हो गई है, तो मैं उनके घर गया देखकर दंग रह गया। बेटे को आंगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढक कर रखा है। उसके सामने जमीन पर ही आसमान जमा भगत गीत गए चले जा रहे हैं, वहीं पुराना स्वर वही पुरानी शालीनता कभी-कभी गाते गाते पतोहू के पास जाते और उसे उत्सव मनाने को कहते हैं। आत्मा परमात्मा के पास चली गई है विरहीन अपने प्रेमी से जा मिली,भला इससे बढ़कर आनंद कौन सी बात में है ।
बहू के पुनर्विवाह का आदेश-
रुढि परंपरा को देखकर मिटाते हुए बेटेकी पत्नी से ही बेटे को आग दिलवाई किंतु जब श्राद्ध की अवधि पूरी हुई,पतोह के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया और यह आदेश देते हुए कहा कि इसका विवाह कर देना । पुत्रवधू चाहती थी कि वह उनकी सेवा करें लेकिन भगत का निर्णय अटल था तू जा नहीं तो मैं इस घर से को छोड़ चल दूंगा।बहू के सामने उनकी आज्ञा का पालन करने के सिवाय कोई चारा नहीं था।
भगत की मृत्यु –
भगत हर वर्ष 30 कोश परिक्रमा कर गंगा जी में स्नान करने जाते वहां के लिए पैदल ही चल देते रास्ते में खंजढी बजाते गाते, और प्यास लगने पर पानी पी लेते, इस बार लौटते वक्त उनकी तबीयत सुस्त हो गई थी । थोड़ा बुखार भी आने लगा उस दिन संध्या को यानी शाम को गीत भी गए,परंतु सुबह लोगों ने गीत नहीं सुना, तो जाकर देखा बाल गोबिन भगत नहीं रहे, उनका निर्जीव शरीर पड़ा था।