Class 10 Hindi NCERT Summary यह दांतरित मुस्कान और फसल
पाठ 6
यह दांतरित मुस्कान और फसल
यह दांतरित मुस्कान फसल कवि की रचनाएं युग धारा प्यासी पत्री आंखें सतरंगी पंखों वाली तालाब की मछलियां रन गर्भ चना जोर गरम भस्मापुर काव्य संग्रह चित्र पात्र हैं नॉन गज उपन्यास वालक्ष्नामा आगरा तारा वरुण के बेटे आलोचना एक व्यक्तिगत एक व्यक्ति का योग संस्कृत साहित्य देश दास कम श्रमिक 10 कम पाठ
नागार्जुन का जन्म नागार्जुन का जन्म बिहार के दरभंगा जिले के सतलाखा गांव में सन 1911 में हुआ उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था आरंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई फिर अध्ययन के लिए वह बनारस और कोलकाता गए 1936 में हुए श्रीलंका गए और वही बौद्ध धर्म की दीक्षा दीक्षित हुए वह 2 साल प्रवास के बाद 1938 में स्वदेश लौट आए घुम्मकड़ी और आखर स्वभाव के धनी नागार्जुन ने अनेक बार संपूर्ण भारत की यात्रा की सन 1998 में उनका देहांत हो गया नागार्जुन की यह पंखों वाली हजार हजार बाहों वाली तुमने कहा था पुरानी जूतियां का कोर्स आखिरी ऐसा क्या कह दिया मैंने मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा कवि ने यह दंतुरित मुस्कान कविता में छोटे बच्चों की मनोहारी मुस्कान देखकर कवि के मन में जो भाव मारते हैं उन्हें कविता में अनेक बिंदुओं के माध्यम से प्रकट किया गया है कवि का क्या मानना है कि इस सुंदरता में ही जीवन संदेश है इस सुंदरता की व्यक्ति ऐसी है कि कठोर से कठोर मन भी पिघल जाए इस दंतुरित मुस्कान की महत्ता तब और बढ़ जाती है जब उसके साथ नजरों का बागपन जुड़ जाता है फसल शब्द सुनते ही खेतों में लहराती फसलों फसल आंखों के सामने आ जाते हैं परंतु फसल है क्या और उसे पैदा करने में किन-किन तत्वों का योगदान होता है इसे बताया है नागार्जुन ने अपनी कविता फसल में कविता यह भी रेखांकित करती है की प्रकृति और मनुष्य के सहयोग से ही सृजन संभव है बोलचाल की भाषा की गति और लव कविता के प्रभावशाली बनती है कहना ना होगा कि यह कविता हमें उपभोक्ता संस्कृति के दौर में कृषि संस्कृति के निकट ले जाती हैं
यह दांतरित मुस्कान
1.
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि – धूसर तुम्हारे ये गात …
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल ?
भावार्थ– कवि यहां छोटे बच्चों को संबोधित करते हुए कहते हैं। कि तुम्हारे नन्हे नन्हे नए दांतों के साथ जो मुस्कान है वह मरे हुए व्यक्ति में भी जान डाल देगी,कवि का तात्पर्य अर्थ मरे हुए आदमी मतलब निराश व्यक्ति के मन को खुशी देगी और उसके जीने की चाहत को बढ़ा देगी,धूल से लिपटे हुए तुम्हारे इस शरीर को ऐसा लगता है, कि जैसे तालाब को छोड़कर मेरी झोपड़ी में कमल के फूल खिल रहे हो,कविकहता हैं कि तुम्हारे ही प्राणों के स्पर्श छूने से पत्थर भी पिघल कर पानी बन गया होगा कवि ने यहां पत्थर कठोर व्यक्ति को कहा है। कि तुम्हारी मुस्कान के आगे कठोर व्यक्ति की आत्मा पिघल जाती है। कवि आगे कहते हैं कि वास्तव बांस या बबूल का पेड़ तुमसे छू गया हो, तो उससे शेफलिका का के फूल झड़ने लग गए। कवि कहता है प्रकृति का सौंदर्य शिशु की सुंदरता से समाया हुआ है
2.
तुम मुझे पाए नहीं पहचान ?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार ?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
भावार्थ– कवि कहता है कि तुम मुझे पहचान नहीं पाए? तुम मुझे बिना पलक झपकाए लगातार देखते ही रहोगे? अर्थ की (छोटा शिशु को जब हम देखते हैं तो वह हमारी आंखों में लगातार देखता रहता है) क्या तुम थक गए हो, क्या तुम्हारी आंखों से आंखें फेर लूं यदि हम पहली बार में परिचित न हो सके, तो इससे क्या यदि आज तुम्हारी मां मध्यम ना बनी होती, तो मैं तुम्हारे नए दांतों की झलकती हुई इस मुस्कान को ना देख सकता, ना जान पाता,
3.
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य !
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
भावार्थ– कवि शिशु से कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी मां धन्य है। मैं तो दीर्घकाल के लिए बाहर रहने वाला तुम्हारे लिए दूसरा व्यक्ति हूं ।अर्थात अधिकतर मैं बाहर ही रहता हूं,और मेहमान की तरह कभी-कभी यहां आ जाता हूं,अर्थात मुझ अतिथ से तुम्हारा अधिक संपर्क ही कहां हो पाया है, तुम्हें तो तुम्हारी मां की उंगलियां ही पंचामृत का पान करते रहती हैं, कवि शिशु से बात करते हुए कहता है कि तुम मेरी और तिरछी निगाहों से देख लेते हो,और जब मेरी आंखें तुम्हारी आंखों से मिल जाती हैं। तब तुम अपने नए दांत झलकते हुए मुस्कुरा उठाते हो। तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान मुझे बहुत सुंदर लगती है,
फसल
1.
एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादूः
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमाः
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्मः
भावार्थ– कवि कहता है फसल एक दो नदियों का नहीं ढेर सारी नदियों के पानी का जादू है,यह एक दो हाथों का नहीं लाखों करोड़ों हाथों के स्पर्श की महिमा है, फसल एक दो खेतों की नहीं बल्कि हजारों खेतों की मिट्टी का गुणधर्म है, कवि कहता है फसल उगाने के लिए एक दो नदी नहीं कई नदियों के जलते पैदा होती है। करोड़ों लोगों के अथक परिश्रम से अपने हाथों से फसल पैदा करते हैं। हजारों खेतों की मिट्टी से अपना सृजनात्मक शक्ति का प्रयोग कर फसल उगती है
2.
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं वह हैं
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
भावार्थ-कवि पूछता है फसल क्या है? कभी स्वयं उत्तर देते हुए कहता है। की फसल कुछ और नहीं बल्कि नदियों के पानी का जादू है। लोगों के हाथों के स्पर्श का गौरव है। भूरी ,काली और चंदन के रंग वाली मिट्टी का गुणधर्म है फसल सूर्य की किरणो का बदला हुआ रूप है ।वह बहती हुई चंचल हवा का सिमट कर बंद हुआ स्वरूप है।