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Class 10 Hindi NCERT Summary आत्मकथा व्याख्या 

Class 10 Hindi NCERT Summary आत्मकथा व्याख्या 

आत्मकथा

जयशंकर प्रसाद का जन्म  1989 वाराणसी, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध सुगनी साहू के घर हुआ था। काशी के प्रसिद्ध क्वीनस कॉलेज में पढ़ने गए परंतु स्थितियां अनुकूल न होने के कारण कक्षा 8 तक ही पढ़ाई हो पाई। बाद में उन्होंने घर पर ही रहकर संस्कृत,हिंदी,फारसी का अध्ययन किया।

 प्रमुख रचनाएं -इनका महाकाव्य कमायानी है

 खंडकाव्य -आंसू, प्रेम पथिक और महाराणा

 कृतियां -झरना,लहर,करुणालय कानन, कुसुम,चित्रहार गद्य के नाटक-अजातशत्रु,चंद्रगुप्त,स्कंद गुप्त ध्रुवस्वामिनी

 उपन्यास-तितली, इरावती,कहानी,संग्रह,आकाशदीप, आंधी,इंद्रजाल,

जयशंकर प्रसाद जी का साहित्यिक जीवन की कोमलता मधुर शक्ति और रोज का साहित्य माना जाता है छायावादी कवियों में प्रमुख कवि हैं इतिहास और दर्शन में उनकी गहरी रुचि रही है आत्मकथा प्रेमचंद संपादन में हंस पत्रिका का आत्मकथा विशेषांक निकलना तय हुआ था। प्रसाद जी के मित्रों ने आग्रह किया कि वह भी आत्मकथा लिखें,प्रसाद जी इसमें सहमत न थे इसी सहमति के तर्क से यह पैदा हुई कविता है।आत्मकथा यह कविता पहली बार 1932 में अंत के आत्मकथा विशेषांक में प्रकाशित हुई थी छायावादी शैली में लिखी गई इस कविता में जयशंकर प्रसाद ने जीवन के यथार्थ एवं आभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्त की है छायावादी सूक्ष्मता के अनुरूप ही अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने के लिए जयशंकर प्रसाद ने ललित सुंदर एवं नवीन शब्दों और बिंबो का प्रयोग किया है। इन्हीं शब्दों एवं बिंबो के सहारे उन्होंने बताया है, कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है, इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान और रोचक मानकर लोग वह करेंगे, कुल मिलाकर इस कविता में एक तरफ कवि द्वारा यथार्थ की स्वीकृति है। तो दूसरी तरफ एक महान कवि की विनम्रता भी है।

Class 10 Hindi NCERT Summary आत्मकथा व्याख्या 

 

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,

मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी ।

इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन – इतिहास

यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास

तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।

तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

भावार्थ-कवि कहता है  मन रूपी भौंरा गुन गुनाते हुए वह अपनी कौन सी कहानी कह जाता है, कि आज यह  घनी पत्तियां मुर्झा कर गिर  रही हैं, मुरझा कर गिरी जा रही हैं कवि के कहने का अर्थ यह है, कि उसके मन में कुछ ऐसी पीड़ा दर्द भरी पुरानी यादें आने लगी, जिसमें उसका हृदय बहुत दुख कर अनुभव कर रहा है, आगे कवि कहता है कि इस अनंत नीले आकाश के नीचे अनगिनत जीवन के इतिहास बनते बिगड़ते चले आ रहे हैं। कभी स्वयं ही अपनी स्थिति पर व्यंग्य करते हैं, इस प्रकार मेरे मन के इस अंतहीन विस्तार जीवन में अनगिनत घटनाएं घटी हैं जो बुरी तरह से निंदा करती हुई, मेरी हंसी उड़ाया करती हैं । यहां कवि अपने मित्रों को संबोधित करते हुए कहता है,मेरे जीवन के इस तरह विषाद युक्त होने की बात जानकर भी तुम कह रहे हो मैं अपनी दुर्बलता की बीती हुई बातें बताऊं। क्या तुम्हें मेरे जीवन की कहानी को सुनकर सुख की अनुभूति होगी, जब तुम देखोगे कि मेरे जीवन रूपी घड़ा बिल्कुल खाली है,कवि का कहना है कि उसके दुख भरे जीवन की गाथा सुनकर तुम्हें कोई सुख नहीं मिलेगा और उन्हें यही अनुभव होगा कि कवि के जीवन सुख प्राप्त की दृष्टि से खाली ही रहा है

 

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-

अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।

यह विडंबना ! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।

भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।

भावार्थ– कवि कहता है कि मेरा रस लेकर स्वयं को भरने वालों सुनो कहीं ऐसा ना हो कि मेरी आत्मकथा को सुनकर तुम अपने आप को मेरे जीवन रूपी घड़े से सुख रुपी रस निकालकर उसे खाली करने वाला समझ लो । अर्थ यह है कि कवि से आत्मकथा लिखने का अनुरोध करने वाले मित्रों को जब कवि की दुख दर्द व्यथा गहराई का आभास होगा, तब वह स्वयं को ही दोषी समझते हुए पश्चाताप कर सकते हैं।

कवि कहता है यह विडंबना की ही बात होगी कि मैं अपने सीधेपन की हंसी उड़ाऊ अर्थ यह है कि कभी अपने भोलेपन सीधेपन के कारण बहुत कष्ट पीड़ा सहनी पड़ी है।यदि वह अपनी सरलता का उपहास करता है तो यह उसके लिए उपहास जनक बात होगी और यदि वह सीधे पन से की गई अपनी भूलों का तथा उसका लाभ उठाकर दूसरे लोगों द्वारा दिए गए धोखा, की कहानी सुनाता है। तो यह भी बात बिडम्बना पूर्ण होगी

 

उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की।

मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

भावार्थ-कवि कहता है कि मैं माधुर चांदनी रातों में स्वच्छ कांतिमान गाथा कैसे गांउ चांदनी रात में खिल खिलाकर हंसते हुए होने वाली बातों का वर्णन व्याख्यान कैसे करूं, मुझे वह सुख कहां मिल पाया जिसका सपना देखते देखते मैं जाग जाग गया। जो सुंदर सपना मैं देख रहा था। जाग जाने पर मेरे पास आने से पहले ही भाग गया। अर्थ यह है कि कवि जिस सुख की कल्पना की थी वह उसे मिलते-मिलते रह गया,उसके हाथ कुछ भी नहीं आ सका था। इस प्रकार सुख से वंचित रहने रह जाने के दुख में गाथा का वर्णन करना मेरे लिए अत्यंत कठिन था।

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की ।

सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ?

भावार्थ-कवि कहता है कि जिसके लाल गालों सुंदर उन्माद छाया में प्रेम, मृदुल, अनुराग से अपना सौभाग्य प्राप्त करती थी। अनर्थ इसके गालों की लालिमा में उषा की लालिमा और भी अधिक मधुर रूप धारण कर लेती है, उसे दिव्य सौंदर्य की याद अब मुझे थके हुए यात्री की राह का सम्बल बनी हुई है ।कवि अपने मित्रों से कहता है कि तुम मेरे अंतर्मन को खोलकर उसे स्मृति याद को इस प्रकार से क्यों देखना चाहते हो जैसे किसी गुदड़ी की सिलाई उधेर कर उसके अंदर सिले कपड़े के टुकड़ों को अलग-अलग करके देखा जाता है। भाव है कि कभी जीवन में अनुराग भर ऐसे सौभाग्यशाली क्षण भी आए हैं उन मधुर क्षणों को याद के सहारे कवि अपने जीवन की दर्द भरी दुख भरी पीड़ा दी यात्रा में आगे बढ़ता चला जा रहा है उन यादों को कवि ने अपने मन में संजो कर रखे हुए हैं।वह प्रश्न करता है कि मेरे अंतर्मन में छिपी हुई मेरी मधुर स्मृति को तुम क्यों देखना चाहते हो इससे तुम्हें क्या मिलेगा

 

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?

क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?

अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

भावार्थ-कवि कहता है कि मेरे जीवन के कम समय में अनेेक घटनाएं घटी हैं, उन घटनाओं से संबंधित बड़ी कहानी आज मैं कैसे बताऊं, क्या यह अच्छा नहीं रहेगा कि मैं दूसरों की कहानी चुपचाप सुनता रहूं, तुम मेरी इस भोली आत्मकथा को सुनकर क्या करोगे अभी उसे खाने का उचित समय भी नहीं है ।और मेरी मौन पीड़ा अभी थक कर

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