Class 10 Hindi NCERT Summary नेताजी का चश्मा
नेताजी का चश्मा
लेखकों का जीवन परिचय
स्वयं प्रकाश
स्वयं प्रकाश का जन्म 1947 इंदौर मध्य प्रदेश में हुआ। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग से पढ़ाई पूरी की और उसके बाद एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी कर ली।उनका बचपन और नौकरी अधिकतर अपना समय राजस्थान में ही बिताया। और सेवा निवृत्ति के बाद भोपाल में ही रहते हैं। आठवीं दशक में उभरे स्वयं प्रकाश आज समकालीन कहानी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं निशानी हैं ।अब तक उनकी तेरा कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से “सूरज कब निकलेगा, आएंगे अच्छे दिन भी, आदमी जात आदमी,संसाधन चर्चित हैं।उनके उपन्यास विनय और ईंधन हैं ।इन्होंने पहला सम्मान “वन माली पुरस्कार” राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कार मिले हैं।उन्होंने मध्यवर्गीय जीवन वर्ग शोषण विरुद्ध चेतना जो हमारे सामाजिक जीवन में जातीय, संप्रदाय, लिंग के आधार पर भेदभाव हो रहा है। पर लिखी गई हैं
‘सारांश’
लेखक स्वयं प्रकाश ने कहा है कि चारों ओर सीमाओं से घिरे भाग का नाम देश नहीं होता है। उसे भाग में रहने वाले सभी नागरिकों,नदियां,पहाड़ों, पेड़, पौधों, वनस्पति, पशु, पक्षियों से है। और इन सब सबसे प्रेम करने तथा इनको इनकी समृद्धि के लिए प्रयास करने को देशभक्त कहते हैं,कहानी में कैप्टन जैसे देश के करोड़ों लोग का देश में योगदान करते हैं ।दर्शाया गया है इस योगदान में बच्चे भी पीछे नहीं हैं,वह अपना अपने-अपने तरीके से योगदान सहयोग करते हैं । कहानी में लेखक लिखते हैं हवलदार साहब किसी कंपनी में हर 15 दिन में एक बड़े कसबे से होकर गुजरते थे, उसके उसे कस्बे के चौराहे के पास एक पान की दुकान थी उसी चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की दो फीट की प्रतिमा लगी थी यह प्रतिमा किसी नेता क्रांतिकारी लेखन आदि पुरुषों की इसलिए लगाई जाती है कि हमारे आने वाली पीढ़ी उनके देश समाज के किए कार्यों को याद रखें उनके संघर्ष से आने वाली पीढ़ियां प्रेरणा ले सकें। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक कस्बे के बारे में क्या-क्या मौजूद था बताया है। साथ-साथ नगर पालिका के कार्यों की व्यक्तिगत चर्चा भी की है, लेखक ने कहा है उसे कस्बे में एक अस्पताल और लड़के,लड़कियों के लिए एक-एक स्कूल था। एक छोटा सीमेंट का कारखाना, दो खुले सिनेमा हॉल थे।साथ-साथ नगर पालिका का कार्यालय भी था, व्यंगात्मक रूप में लेखक ने नगर पालिका के ढुलमुल कार्यों को करने की बात बताई है नगर पालिका अपना कार्य थोड़ा बहुत किया करती थी जहां कभी सड़क बनवा देता, तो कभी नाली बनवा देता, तो कहीं नल लगवा दिया,तो कहीं शौचालय घर बना दिया। इस कहानी जो उसे कस्बे के चौराहे पर जो संगमरमर की पत्थर की मूर्ति नेताजी सुभाष चंद्र जी बोस जी की लगी है। वह मूर्ति नगर पालिका ने ही बनवाकर लगाई थी,इस मूर्ति को लेकर यह कहानी है हवलदार साहब जब उस पान की गुमटी पर पान खाने के लिए खड़े होते हैं तो उनकी नजर उस मूर्ति पर पड़ती है और वह देखते हैं की मूर्ति तो बहुत खूबसूरत है, नेताजी मुस्कुरा रहे हैं ।और हवलदार साहब को उस आजादी के नेता जी के नारे की याद आती हैं “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”दिल्ली चलो! उनकी नजर नेताजी के चश्मे पर पड़ती है,वह देखते हैं मूर्ति तो पत्थर की है, लेकिन जो चश्मा लगा हुआ है वह असल का है। असल चश्मा है, कल फ्रेम वाला था। हवलदार साहब अपने काम पर चले जाते हैं और जब वह दूसरे दिन चौराहे से गुजरते हैं तो देखते हैं कि आज चश्मा बदल गया है, आज उसे कल फ्रेम का चश्मा लगा है फिर तीसरे दिन पान वाले के यहां रुकते हैं। और देखते हैं कि चश्मा दूसरे डिजाइन का लगा है, आज लाल गॉगल्स लगा हुआ है वह सोचते हैं और मन ही मन मुस्कुराते हैं, मूर्ति पत्थर की और चश्मा असली,लेकिन वह इसके बारे में सोचते हैं। कि ठीक ही है कस्बे वालों का तो सराहनीय कार्य है। कि उन्होंने अपने महापुरुष की याद आज भी है, बात मूर्ति की नहीं है उनकी भावनाओं की है। आज लोग देशभक्ति को मजाक ही समझ ने में बाज नहीं आते, हवलदार साहब उसे कस्बे के चौराहे से गुजरते और बदला हुआ चश्मा नजर आता उनसे अब रहा नहीं गया। और उस पान वाले से पूछ ही लिया भाई आपके नेता जी का चश्मा हर रोज बदल क्यों जाता है। उसे पान वाले ने मुस्कुराते हुए हवलदार साहब से व्यंगात्मक रूप में कहा! कि यह काम कैप्टन चश्मे वाले का करता है। शायद हवलदार साहब कुछ समझ नहीं पाए, उन्होंने पान वाले से पूछा! क्या मतलब, उसे पान वाले ने कहा! मतलब यदि उसके पास इस काले चश्मे का कोई ग्रह का गया तो नेताजी का यह चश्मा उतार कर बेच देता है। और दूसरा चश्मा पहना देता है,इस बात को लेकर हवलदार साहब के मन में देशभक्ति महापुरुषों के सम्मान को लेकर अनेक विचार आते हैं लेकिन हवलदार साहब फिर उसे पान वाले से पूछते हैं। कि भाई नेता जी का ओरिजिनल चश्मा कहां है? मतलब जो पत्थर का बना हुआ। पान वाले ने इस प्रकार से जवाब दिया, मुस्कुराकर व्यंगात्मक की मास्टर लगाना भूल गया पान वाले के लिए तो यह बात मजेदार थी परंतु हवलदार साहब को चकित द्रवित करने वाली बात थी।हवलदार साहब की समझ में आया कि उसे प्रतिमा के नीचे पत्थर पर मास्टर ममोतीलाल नाम लिखा था।मास्टर मोतीलाल का नाम लिखा था उन्होंने मन ही मन सोचा जल्दबाजी में चश्मा बनाना भूल गया होगा, ,चश्मा टूट गया होगा,या नगर पालिका को जल्दी रही होगी, उसे कम समय में बनवाया होगा, यह सब हवलदार साहब को बड़ा अजीब लग रहा था खयालों में खोए खोए पान वाले को पैसे देकर आगे बढ़ गए, और फिर उन्होंने उसे चश्मा वाले के बारे में पूछा कि वह कैप्टन था? क्या नेताजी के साथ में, पान वाला बोला !वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में, हवलदार साहब को यह सब बड़ा बुरा लगा था। उसे देशभक्ति का मजाक उड़ाने में हवलदार साहब 2 साल तक काम के लिए इस कस्बे से गुजरते रहे। और उसे मूर्ति पर हर रोज चश्मा बदलता हुआ नजर आया कभी काला चश्मा, तो कभी धूप का चश्मा, तो कभी गोल प्रेम वाला चश्मा, तो कभी लाल प्रेम वाला चश्मा, नेताजी की तस्वीर पर कोई ना कोई चश्मा तो होता जरूर था। कई दिनों बाद जब हवलदार साहब उसे चौराहे से गुजरे तो नेताजी का चश्मा मूर्ति पर नहीं था। पान वाले की दुकान भी बंद थी, कुछ चौराहे पर और दुकान भी बंद थी, लेकिन जब दूसरे दिन पान वाले से हवलदार साहब पूछा ! आपके नेताजी का चश्मा कहां गया ? आज तो पान वाले ने मुंह से पान थूंक कर बोला कैप्टन मर गया साहब। और अपने आंगौछे से अपने आंसुओं को पूछने लगा हवलदार साहब अब क्या पूछते ? उन्होंने पैसा चुकता किया और जीप में बैठकर चल दिए मन ही मन सोचने लगे क्या होगा उसे कोम का जो अपने देश की खातिर सब कुछ निछावर करने वालों पर हंसने वालों का, बहुत सी बातें रास्ते में सोचते रहे 15 दिन बाद हवलदार साहब जब उसे कस्बे से गुजरने वाले थे ।तो उन्होंने अपने ड्राइवर से पहले ही कह दिया था। कि आज चौराहे पर गाड़ी ना रोकना,काम कुछ जरूरी है इसलिए पान आगे ही खा लेंगे, और जब और मन में सोच लिया था, कि आज उसे मूर्ति की तरफ नहीं देखूंगा लेकिन जब उनकी गाड़ी चौराहे पर आई, तो आदत से मजबूर हवलदार साहब ने मूर्ति की ओर देखा!और देख कर ड्राइवर से कहा!रुको ड्राइवर ने तेज गाड़ी में ब्रेक लगायी तो जोर से आवाज आई, लोग देखने लगे हवलदार साहब गाड़ी से उतरे और तेज गति से दौड़ते हुए मूर्ति के पास खड़े होकर देखा। कि नेताजी की आंखों पर सरकंडे यानी (सिरकी ,सेठे )का चश्मा लगा हुआ था। जो अक्सर बच्चे बनाते हैं हवलदार साहब के आंखों में आंसू आ गए।