Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Aroh -Chapter 12 मीरा

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Aroh -Chapter 12 मीरा

सन्दर्भ—12 एनसीईआरटी की पुस्तक आरोह कृष्ण की दीवानी मीरा से लिया गया है । रचयिता कवियत्री मीरा है।

 मीरा का जीवन  परिचय

मीरा का जन्म 1498 ई  कुड़की गांव में हुआ था कुङकी गांव राजस्थान के मारवाड़ रियासत में स्थित था मीरा के पिता का नाम  रत्न  सिंह था दादा का नाम राघव राव जोधा था राजस्थान के प्रसिद्ध व्यक्ति थे।मीरा मे बचपन से ही कृष्ण भक्ति जाग उठी थी,बचपन मॅ गांव में कोई साधू आए थे और उन्होंने उन्हें कृष्ण की मूर्ति दी थी, मीरा जी की माता जी का निधन जब वह चार-पांच वर्ष की थी उसी समय हो गया था मीरा अपने दादा राव दूदा जी के पास चली गई मीरा का पालन पोषण वही हुआ, मीरा के मन में  कृष्ण की भक्ति बचपन से ही थी, और दादा के विचारों से उनके अंदर कृष्ण की भक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। दादाजी की मृत्यु के बाद मीरा की देखभाल उनके चाचा बीरभ देव ने की जब मीरा 16 वर्ष की हुई तो उनके चाचा ने उनका विवाह राजस्थान मारवाड़ के प्रसिद्ध महाराणा सांगा के पुत्र कुंवर भोज राव के साथ करवा दिया विवाह 3 साल बाद भोज राव की मृत्यु हो गई । उसके बाद मीरा ने अपना मन पूरी तरह भागवत भजन में लगा लिया कृष्ण भगवान की मूर्ति के सामने नाचना गाना उनकी दिनचर्या बन गई थी, उनके दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते थे और उनके प्रति निष्ठा प्रकट करते थे 1546 में मीरा ने इस लौकिक अस्तित्व का लोप हो गया

Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Aroh -Chapter 12 मीरा
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Aroh -Chapter 12 मीरा

पद 1

मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी
अब त बेलि फॅलि गायी, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही।

संदर्भ -प्रस्तुत पद कक्षा 11 हिंदी किताब पाठ “मीरा” से लिया गया है इसकी रचना स्वयं मीरा ने की है

प्रसंग– कवियत्री मीरा कृष्ण को अपना पति मान लिया है गिरधर पर्वत धारण करने वाले,गोपाल गोपालक गाय चराने वाले, कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई हो गई उन्होंने अब कृष्ण से प्रेम हो गया था वह कृष्ण के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गई हैं, उन्होंने अपने परिवार को भी त्याग दिया उनकी भक्ति की राह में आने वाले सभी लोगों को त्याग दिया

 व्याख्या– मीरा कृष्ण के प्रति दीवानी हैं और अपनी बेबाक आवाज में कहती हैं कि अब मेरा इस दुनिया में गिरधर गोपाल कृष्ण के सिवाय कोई नहीं है,मेरे पति कृष्ण ही हैं जिन्होंने अपने सिर पर मोर पंख वाला मुकुट धारण कर रखा है । उसे छोड़कर मेरे माता-पिता,सास- ससुर, रिश्तेदार कोई नहीं है वह कहती हैं कि कृष्ण ही मेरा सहारा हैं और सभी को मैंने त्याग दिया है ।मैंने तो कुुल की प्रतिष्ठा को भी त्याग दिया है मेरा कोई क्या लेगा मेरी रक्षा तो स्वयं भगवान कृष्ण ही कर रहे हैं, मैंने माया, मोह को त्याग कर संतो यानी साधकों के साथ बैठकर खुशी से लोकलाज भी त्यागी हैं, जैसे पानी से सीॅचकर बेल बढ़ती है और उसमें फल लगते हैं  मैने इस बिरहा आंसुओं से प्रेम की बेल को सीॅचकर बोया है अब तो यह प्रेम रूपी बेल फैल गई है, और इसमें आनंद रूपी फल भी लगने लगे हैं ,मीरा कहती हैं कि मैने रो-रो कर कृष्ण के प्रेम को प्राप्त किया है और इसी प्रेम को मन में बसा लिया है और कृष्ण के सिवाय मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा है। मीरा कहती है कि जिस तरह दूध दही में मथनी डालकर मथा जाता है और उसके बाद उसमें मक्खन निकल आता है जो ले लिया जाता है और छाछ अलग कर दी जाती है। ऐसा ही कृष्ण की भक्ति में प्रेम है आशय यह है कि इस संसार का चिंतन मनन करके यह पाया की भगवत भक्ति ही संसार का सार है उसी को मैंने अपना लिया है “भगत देखिए राजा हुई और जगत देखि रोई भक्त को देखकर प्रसन्न हो जाती हूं लेकिन और इस जगत को सांसारिकता के जाल में फंसा हुआ देखकर रोना आता है दासी मीरा कृष्ण से प्रार्थना करती है कि है कृष्णा मैं आपकी सेविका हूं मेराअब उद्धार करो और प्रतीक्षा न कराओ

पद 2

 पग घुँघरू बांधि मीरां नाची,
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची
लोग कहँ, मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल-नासी
विस का प्याला राणी भेज्या, पवित मीरा हॉर्सी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी

संदर्भ -प्रस्तुत पत्तियां हमारी पाठ पुस्तक एनसीईआरटी कक्षा 12 के पाठ आरोह “मीरा” से ली गई है इसकी रचयिता कवित्री मीरा जी हैं

प्रसंग-इस पद में मीरा ने कृष्ण से अपना अटूट प्रेम दर्शाया है उन्होंने कृष्ण के अनुराग में प्रेम में सब कुछ लोक लाज छोड़ दी है। घर परिवार के मर्यादा को तोड़ दिया है। और कृष्णा से कहती हैं

व्याख्या-मीरा कहती हैं! कि हे प्रभु तुम्हारी यह दासी अपने पैरों में घुंघरू बांध कर आपका प्रेम में नाच उठी है। सच यह है कि मैं अपने प्रभु को की स्वयं दासी बन गई हूं, लोग मुझे पागल कहते हैं  कृष्ण के प्रेम पर मेरी सास मुझे कुल कलनकनी कहती है उसका कहना है कि मैं यह सब करके उसके कुल को मिट्टी में मिला दिया है।राणा ने मुझे विष जहर का प्याला भेजो जिसे भी मैं हंसते-हंसते पी गई, परंतु कृष्ण की इस दासी पर उसका असर भी नहीं हुआ आगे मीरा कहती हैं कि मेरे तो प्रभु गिरिधर कृष्ण है .मैने उनसे प्रभु के दर्शन असीम से हो गए हैं

 

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