Class 11 Summary अक्कमहादेवी: व्याख्या
पाठ 18
अक्कमहादेवी
जीवन परिचय
भारतीय साहित्य के विविध प्रस्थानों से उत्पन्न हुई अनगिन्ती आवाज, अक्कमहादेवी का नाम उच्च स्तरीय कवित्रियों के बीच एक विशिष्ट स्थान धारण कर चुका है। उन्होंने अपने काव्य में समाज, भक्ति और महिला उत्थान के विषयों पर अद्भुत विचार किये। उनके गहरे विचारों और उच्च कला के द्वारा उत्तम कविताएँ लिखी गईं जिन्होंने भारतीय साहित्य को नया मार्ग प्रदर्शित किया।
बचपन और शिक्षा
अक्कमहादेवी का जन्म 23 जनवरी 1910 को विश्वकर्मा समुदाय के एक छोटे से गांव नेरलगुंटा, कर्नाटक में हुआ था। उनका वास्तविक नाम शंकरराव था, लेकिन उन्हें “अक्का” यानी “बहन” के रूप में सम्बोधित किया जाता था। बचपन से ही अक्का का रूख साहित्य की ऊँचाइयों की ओर था। उन्होंने जब चार वर्षीय थीं, तो उनके पिताजी ने उन्हें मंदिर में भगवान शिव की सेवा करने के लिए भेज दिया था। इसके बाद उन्होंने संस्कृत में तांत्रिक शिक्षा प्राप्त की।
साहित्यिक यात्रा
अक्का का साहित्यिक यात्रा 20 वर्षीय थी, जब उन्होंने प्रथम कविता “जनानी” को लिखा। यह कविता उनके विचारों, उनके समाज के विचलनों और उनकी भक्ति के साथ जुड़ी थी। उनके लेखन में अद्वितीय अनुभवों को व्यक्त करने की क्षमता थी जो उन्होंने सन्यास के बाद प्राप्त की थी। वे अपने यात्रा-भ्रमणों के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों की भक्ति संस्कृति को छूने का अवसर पाईं।
भक्ति और सामाजिक सुधार
अक्का ने अपने कविताओं में भगवान शिव के प्रति अपार भक्ति का अभिव्यक्त किया। उन्होंने जीवन को एक अनंत यात्रा के रूप में व्यक्त किया और अंतर्निहित भगवानी की खोज में अपने आप को खो दिया।
उन्होंने समाज में महिलाओं के उत्थान के लिए काम किया। उनकी कविताएँ और उनके भक्ति गीत स्त्रियों को उनके अधिकारों और उनके आत्म-समर्पण की महत्वपूर्ण सूचना देती हैं।
व्याख्या
1. हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद ! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह ! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत चूक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह कक्षा 11 पाठ एक्कमहादेवी से लिया गया है इसकी रचयिता अक्क महादेवी हैं
प्रसंग-कवियत्री भगवान शिव की भक्ति थी वह सांसारिकता त्याग कर शिव की आराधना में लीन होने का संदेश देने की बात करती हैं
व्याख्या-है मूर्ख( मतलब सांसारिक वस्तुओं की चाहत) तू कुछ पाने के लिए मत तङफ है! नींद, मुझे मत सता। सोने के लिए ना तड़प हे! क्रोध तू मन में उथल-पुथल और हलचल न पैदा कर, हे मद तू (संसारिक वस्तुओं का नशा) तू और अधिक पागल मत हो।हे! इर्षा तू दूसरों की उन्नति में जलन मत कर वह चराचर ओझल चेतन संसार तुम्हारे लिए यह पूर्ण अवसर है। मैं सबके लिए शिव भक्ति का संदेश लेकर आई हूं अर्थात संसार के सभी वस्तुओं का त्याग कर शिव के चरणों में समर्पित हूं।
2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
प्रसंग– इन पंक्तियों में कवित्री शिव के चरणों में खुद को समर्पित करते हुए कहती है
व्याख्या-हे जूही के फूल के जैसे कमल ईश्वर तू मेरा सब कुछ छीन ले और कुछ ऐसा करो। कि मुझे भीख मांगनी पड़े,मैं अपना घर, गृहस्ती, जमीन, संपति सब भूल जाऊं, मैं किसी के सामने भीख मांगू,झोली फैलावूं ,वह मुझे जब भीख में कुछ देने का हाथ बढ़ाये तो वह जो दे रहा है। मेरी झोली में ना जाकर नीचे गिर जाए । और यदि मैं उसे उठाने के लिए झुको तो कहीं से कोई कुत्ता आए। और उसे झपट कर ले जाए। मैं लाचार हो जाऊं मेरा अहंकार नष्ट हो जाए ,मेरा घमंड चकनाचूर हो जाए ।