Ve Aankhen Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Chapter 14 काव्य भाग “वे आँखें”
“वे आँखें”
कवि सुमित्रानंदन पंत
कविता का सारांश
वे आँखें कविता में स्वतंत्रता के पूर्व किसानों की मार्मिक दुर्दशा का सही चित्रण करके आपके सामने तस्वीर पेश की है। उनकी आंखें हमेशा दुख और दीनता से भरी रहती थी। एक समय था कि वह स्वाधीन रहता था, अपने दम पर रहता था,परंतु आज उसने उसे अपनी जमीन से बेदखल कर दिया गया, जमीन छीन ली गई, महाजनों ने उनके पुत्र को क्रूरता पूर्वक मार डाला, घर बिक गया, खेती नीलाम हो गई, ब्याज के लिए खूब अत्याचार किए गए, पत्नी बिना दवाई मर गई, बेटी बिना दूध के अकाल मृत्यु हो गई। पुत्रवधू को एक दिन साहूकार ने बुलाया दूसरे दिन कुएं में कूद कर मर गई। इन सबको याद कर किसान की छाती फट जाती है
1. अधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन!
1-संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग– कविता में इन पत्तियों में आजादी (स्वतंत्रता) के पहले जो किसानों की दुर्दशा थी उनका चित्रण अपनी इस दो आंखें कविता के माध्यम से किया है
व्याख्या-किसने की दोनों आंखों में झांकते हुए लिखते हैं व्याख्या-कवि कहता है कि इन किसानों को आंखें मुझे एक अंधेरी गुफा सी भी भयानक लगते हैं। जिस प्रकार अंधेरी गुफा में झांकने से डर लगता है वैसे ही इन किसानों की आंखों में देखने से भय लगता है। किसाने की इन धंसी आंखों में दुख, दर्द निराशा, शोषण,अत्याचार पीङा से भरी हुई हैं।यह आंखें उसे गरीब का दुख और अत्याचार से जानने का रूप दिखाती हैं
2. वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका !
2-संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग -प्रस्तुत पंक्तियों में पहले जब किसान खुशहाल था और उसके बाद राजतंत्र में साहूकारों द्वारा प्रताड़ित करना जो स्वागत करता से स्वतंत्रता से पहले था उसकी तुलना की गई है
व्याख्या-भारतीय किसान हमारी हजारों वर्ष पहले स्वाधीन था किसान पहले से ही स्वाधीन था और उसके पास अपने खाने की खेती थी । तब उसकी आंखों में चमक थी,खुशहाली दिखती थी। उसकी अपनी समाज में मान सम्मान, मर्यादा,प्रतिष्ठा थी। लेकिन आज उसका मान,सम्मान ,स्वाभिमान ऐसे छोड़ कर चला गया है कि जैसे नदी में बाढ़ आने पर नदी के किनारे का कटान से कांगुरा मिट्टी का एक बड़ा टुकड़ा पानी में बह जाता है अर्थात इसका जीवन आज शून्य हो चुका है
3. लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तून से!
3-संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग-कवि ने इन पंक्तियों में भारतीय किसान की उसे मार्मिक दशा का चित्रण किया है कि वह खूदखोरों महाजनों के कर्ज देने वालों ने उसे उसे फंसा लिया है।और उसे उसकी संपत्ति से बेदखल कर दिया।आज भी उसके खेत उसकी मन की आंखों में लहलते नजर आ रहे हैं ।
व्याख्या-कवि कहता है कि किसानों के लहलते खेत आज भी उसके मन में झूम उठते हैं।लेकिन वह खेत आज उन महाजनों ने थोङा कर्ज देकर,उनकी सारी खेती अपना ली है। उन खेतों का एक-एक द
तिनका उनको प्यारा था। जिसे देखकर उनके जीवन में हरियाली आ जाती थी। मन प्रसन्न हो जाता था, लेकिन आज वही खेत वही खुशी से उन्हें वंचित कर दिया गया है उनके खेतों से संपत्ति के अधिकार उनसे छिन लिए गए हैं।
4. आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा !
4-संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग-ये पंक्तियों उस किसान की दर्द भरी कहानी बयां करतीं हैं। महाजनों का किसानों के कर्ज ऋण वापस न कर पाने की दिशा में उसको खूब यातनाएं दी और उसके प्रिय पुत्र को मार डाला।
व्याख्या-इस पीङा को कवि ने जिस तरह से चित्रण किया है। कि हृदय दुख में डूब जाता है।उसे भारतीय किसान के बेटे को जवानी में ही उन साहूकारों के करिंदों ने उसको लाठी से पीट-पीट कर मार डाला उसकी वह
हत्या आज भी उसकी आंखों में सामने प्रत्यक्ष होकर नाचने लगती है
5. बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
5 संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग-इस पंक्तियों में कवि ने भारतीय किसान की मार्मिक दुर्दशा का चित्रण करते हुए कि महाजन अपनी धन और ब्याज व वसुलने के लिए कैसे-कैसे अत्याचार किसानों पर करते हैं।
व्याख्या-इन पत्तियों में कवि ने चित्रण किया है कि महाजन अपना ब्याज वसूलने के लिए किसानों के घर संपत्ति सब नीलाम कर डाली ।उसे बेघर कर दिया और अपनी एक-एक पैसा चुका लिया ।उसके मन में किसानों की दशा को देखकर जरा भी दया नहीं आई । उसने उसके प्रिय दो बैलों की जोड़ी थी उसको उसकी आंखों के सामने नीलाम कर दिया और वह किसान विवस रहा। आज भी उसकी आंखें उसके बैलों की जोड़ी नीलाम होते मन में याद आती है और उसका मन में पीड़ा वेदना जगा देती है
6. उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती !
6 –संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग-इस कविता में स्वतंत्रता से पूर्व किसान की दुर्दशा का चित्रण किया गया है। पंक्तियों में बताया है कि उसकी संपत्ति और उसकी गाय नीलाम कर दी गई हैं।
व्याख्या-किसान के पास एक उजली सफेद गाय थी जिससे उसको अत्यंत स्नेह था, और वह गाय भी उसे किस से स्नेह रखती थी, वह गाय उसके सिवाय वह दूध दुहने के लिए किसी और को पास आने नहीं देती थी। उसकी आंखों के सामने उस गाय का स्नेह आज भी उमङ पड़ता है।उसका सब कुछ उजङ गया आज भी उसकी याद उसे आती है
7. बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली, आँखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
7 संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग– इन पंक्तियों में भारतीय किसानों की मार्मिक दुर्दशा के बारे में महाजनों सूदखोरों के शोषण के कारण खुशहाल किसानों को किस प्रकार उजाङा गया।जवान पुत्र मार डाला गया, खेती नीलाम हो गई,गाय भी बिक गई नीलाम हो गई,और तब उनका तब भी उनका अत्याचार कम नहीं हुआ।
व्याख्या-इन पंक्तियों में कवि ने किसान की बहुत ही मार्मिक दुर्दशा मन को झकझोर देने वाली का चित्रण किया है।भारतीय किसान की पत्नी बिना दवा-दारू के मर जाती है किसान इतना फटे हाल था कि वह पत्नी का इलाज भी नहीं करा सका। यह सोचकर उसकी आंखों में आंसू भर आते हैं ।पत्नी की मृत्यु के पश्चात इसकी नन्ही बिटिया जो उसके दूध पर आश्रित थी उसकी सही से देखभाल नहीं हो पाई और उसकी भी अकाल मृत्यु हो गई। ऐसी यातनाओं ने उसे घेर लिया।
8. घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन
पकड़ मँगाया कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन!
8 संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग– प्रस्तुत पंक्तियों में भारतीय किसान के स्वतंत्रता के पहले की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करते हुए कवि लिखते हैं इतना दुख सहने के बाद उसे किसान की उसकी विधवा बहू ही बची थी
व्याख्या-उस भारतीय किसान के घर अब एक पुत्र बधू विधवा ही बची थी। उसके पति की हत्या का कारण उसे ही समझा जाता था।लेकिन अब वह इस घर में लक्ष्मी के समान थी। एक दिन उसे कोतवाल ने बुलाकर उसकी अपनी वासना से भ्रष्ट कर दिया। परिणाम यह हुआ कि वह लोक लज्जा के मारे कुएं में कूद कर जान दे दी।बेचारे किसाा का अब सब कुछ लुट गया था। उसके घर दुख पीड़ा के सिवाय कुछ नहीं बचा था ।
9. खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती ।
9 संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग– कवि ने इन पंक्तियों में किसान के मार्मिक जीवन का चित्रण किया है। महाजन ने अपने कर्ज वसूलने के लिए किसान का सब कुछ लूट लिया। और अपने परिवार को याद करता हुए तड़प उठता है
व्याख्या– पत्नी मरी तो मरी उसका मारना कष्टकारी उतना नहीं है वह तो पैर की जूती के समान है। मनुष्य चाहे एक फटने के बाद दूसरा बदल ले इसलिए वह किसान दूसरी पत्नी भी नहीं ला सकता था। परंतु उसे अपने जवान लड़के की हत्या की याद आती है, तो वह अपने आप को रोक नहीं पता और उसे याद कर उसके सीने पर सांप लोटने लगते है, और उसके सीने में आसहनीय दर्द हो उठता है
10. पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।
10 संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियों हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह के “वे आँखें” कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं
प्रसंग– आजादी के पहले भारतीय किसानों को कभी महाजन ने कभी सरकारी अफसर ने लूटा है और उसका यह लुटा-फूटा अतीत उसके दुख का कारण बन गया।
व्याख्या -किस अपने पुराने दिनों को याद करता है जब अपने सुख वैभव को याद करता है।तो कुछ क्षण उसे खुशी प्रसन्नता की अनुभूति होती है, उसकी आंखों में चमक आ जाती है।किसान को अपने खेत, गाय ,बैल की जोड़ी, पुत्र, पुत्री,बहू,पत्नी की कल्पना उसे सुख देने लगती है लेकिन जैसे-जैसे वह कल्पना की गहराई में उतरता उसकी नजरें गढी की गढी रह जाती हैं । तो उसे शून्य नजर आने लगता है।उसकी आंखों के सामने एक-एक करके सबके नष्ट होने की याद आती है। और यह स्मृतियां उसके लिए दुख दायी बन जाती हैं